एक्शन लैब 2050 ने भारत को माहवारी के दौरान स्वच्छता से संबंधित पुरानी सोच से मुक्ति दिलाने के लिए अपने सफ़र की शुरुआत की

कोलकाता: चौथे राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-4) 2015-2016 के अनुमानों के अनुसार, भारत में माहवारी के चक्र से गुजरने वाली 336 मिलियन महिलाओं में से केवल 36% (121 मिलियन) महिलाएँ और लड़कियाँ स्थानीय तौर पर या व्यावसायिक रूप से निर्मित सैनिटरी नैपकिन का उपयोग करती हैं। इसके अलावा, ग्रामीण और शहरी इलाकों में इस तरह के उत्पादों के उपयोग में काफी बड़ा अंतर दिखाई देता है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 71% लड़कियों को अपनी पहली माहवारी से पहले मासिक-धर्म के बारे में कोई जानकारी नहीं होती है।

एक्शन लैब 2050 (AL50) एक सामाजिक उपक्रम है, जिसकी शुरुआत समाज में महिलाओं के लिए बड़ा बदलाव लाने के दृष्टिकोण के साथ हुई है। इसका उद्देश्य एक ऐसे परिवेश का निर्माण करना है, जिसमें हर महिला और लड़की अपने मानवाधिकारों का प्रयोग कर सकें और अपनी पूरी क्षमता का भरपूर उपयोग कर सकें। अपने तकनीकी विशेषज्ञता और परिचालन क्षमताओं के साथ, AL50 प्रत्येक महिला को अपनी वास्तविक अहमियत की पहचान में सक्षम बनाने के लिए एक अनुकूल माहौल के निर्माण के व्यापक उद्देश्य के लिए पूरे परिवेश में हितधारकों के एक समूह की खोज करने, उनका मार्गदर्शन करने एवं उन्हें तैयार करने का प्रयास करता है।

एक वर्चुअल कॉन्फ्रेंस के माध्यम से AL50 को लॉन्च किया गया, और इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि श्रीमती अपराजिता सारंगी, संसद सदस्य, भुवनेश्वर, के साथ-साथ कई अन्य प्रतिष्ठित वक्ताओं ने अपनी उपस्थिति दर्ज की, जिसमें श्री बसंत कुमार, कंट्री डायरेक्टर, प्रोजेक्ट कंसर्न इंटरनेशनल; श्रीमती स्नेहा मिश्रा, सचिव, आईना; श्रीमती नीलिमा पांडे, डायरेक्टर- प्रोग्राम डिजाइन, डिस्ट्रिक्ट ट्रांसफॉर्मेशन प्रोग्राम (DTP), श्रीमती ललिता भट्टाचार्जी, एफएओ; डॉ. एम.जी. रघुनाथन, प्राचार्य, गुरु नानक कॉलेज तथा इंडियन साइंस कांग्रेस एसोसिएशन (ISCA) की कार्यकारी समिति के सदस्य, भारत सरकार; तथा एक्शन लैब 2050 के प्रतिनिधि के तौर पर मो. आकिब हुसैन, सह-संस्थापक; श्रीमती रूबी रे, सीईओ एवं निदेशक; और श्री सृष्टिजीत मिश्रा, सह-संस्थापक और निदेशक शामिल हैं।

इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए, श्रीमती रूबी रे, सीईओ एवं निदेशक, एक्शन लैब 2050 ने कहा, भारत अनगिनत संस्कृतियों वाला देश है, जहाँ माहवारी और मातृ स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं पर तत्काल समाधान उपलब्ध कराने वाले एकल मंच और संवाद के एकल माध्यम की आवश्यकता है। हमारी महिलाओं और लड़कियों को, खास तौर पर समाज के ग़रीब तबके की महिलाओं और लड़कियों को सशक्त बनाने के लिए माहवारी से जुड़ी शर्मिंदगी को खत्म किया जाना चाहिए। हमारे देश में सिर्फ 36% महिलाएँ ही सैनिटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं, और प्रजनन संबंधी 70 प्रतिशत बीमारियाँ माहवारी संबंधी खराब स्वच्छता के कारण होती हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में माहवारी के चक्र से गुजरने वाली 33.6 करोड़ महिलाओं में से लगभग 12.1 महिलाएँ सैनिटरी नैपकिन का उपयोग करती हैं। अक्सर खराब स्वच्छता सुविधाओं के कारण बाकी महिलाएँ और लड़कियाँ प्रतिकूल और अनुपातहीन रूप से प्रभावित होती हैं। वे समाज की मर्यादाओं और सुरक्षा को लेकर चिंतित रहती हैं, क्योंकि ये सारी चीजें सांस्कृतिक रूप से प्रतिबंधित बातें के दायरे में आती हैं, जिसका बुरा असर महिलाओं और लड़कियों के जीवन पर पड़ता है और लैंगिक आधार पर महिलाओं के बहिष्कार को बल मिलता है कोविड-19 महामारी की वजह से समाज के ग़रीब तबके की महिलाओं के बीच माहवारी संबंधी स्वच्छता की समस्या और विकट हो गई है। इसी तरह की समस्याओं ने हमें एक्शन लैब 2050 के गठन के लिए प्रेरित किया, जहां हम इस मुद्दे पर शिक्षा की कमी को दूर करते हैं, सामाजिक प्रतिबंध और कलंक की भावनाओं को दूर करते हैं। अपनी तरह के पहले कामर्स प्लेटफॉर्म के माध्यम से हम माहवारी से संबंधित ऐसे उत्पादों की कमी को दूर करते हैं, जो दोबारा इस्तेमाल करने योग्य और बायोडिग्रेडेबल हैं। इसके अलावा हम UNDP के सतत विकास लक्ष्यों के अनुरूप काम करते हैं, तथा स्वास्थ्य मंत्रालय, भारत सरकार के साथ मिलकर स्कूलों में उचित स्वच्छता की हिमायत भी करते हैं। हमें पूरा विश्वास है कि, एक्शन लैब 2050 माहवारी संबंधी स्वच्छता के बारे में समाज में बड़े पैमाने पर जागरूकता फैलाने और सकारात्मक बदलाव लाने की लगातार उभरती हुई जरूरत को पूरा करेगा।

चर्चा को आगे बढ़ाते हुए श्रीमती नीलिमा पांडे, डायरेक्टर- प्रोग्राम डिजाइन, डिस्ट्रिक्ट ट्रांसफॉर्मेशन प्रोग्राम (DTP), ने कहा,मैं एक्शन लैब 2050 टीम को बधाई देना चाहती हूँ, जो माहवारी के दौरान स्वच्छता के बारे में जानकारी के अभाव को दूर करने के लिए प्रयासरत हैं। वक्ताओं की बातें सुनकर मुझे बेहद खुशी हुई, जिन्होंने इसे महिलाओं के लिए एक अलग अधिकार के रूप में मान्यता दिलाने की वकालत की। पीरामल फाउंडेशन में हम इस क्षेत्र में एक शिक्षार्थी की तरह हैं, और हमारे लिए अपने उद्देश्य में सफल होने और लड़कियों की सेवा करने का एकमात्र तरीका विशेषज्ञों के साथ सहयोग करना और इसके प्रभाव क्षेत्र का विस्तार करना है।

AL50 मातृत्व एवं माहवारी संबंधी स्वास्थ्य के सामाजिक, सांस्कृतिक और नीति-निर्माण पहलुओं पर शोध के लिए विभिन्न विश्वविद्यालयों के साथ गठबंधन करने की प्रक्रिया में है। कुल मिलाकर, AL50 का लक्ष्य हर महिला को अपनी पूरी क्षमता का भरपूर उपयोग करने के लिए एक अनुकूल माहौल के निर्माण के व्यापक उद्देश्य के साथ पूरे परिवेश में सक्षम हितधारकों के एक समूह की खोज करना, उनका मार्गदर्शन करना एवं उन्हें तैयार करना है। उम्मीद है कि, AL50 इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए सर्वोत्तम प्रक्रियाओं, तकनीकी एवं सामाजिक पहलुओं तथा इनोवेशन को एकजुट करके एक लाइब्रेरी तैयार करेगा, जो पूरी व्यवस्था में बदलाव लाने में सक्षम होगा। AL50 का उद्देश्य पूरे परिवेश में संबंधित क्षेत्रों के दिग्गजों को सम्मानित एवं पुरस्कृत करने के लिए आदर्श मंच बनना है। इसका सबसे बड़ा उद्देश्य समाज में एक ऐसे स्थायी परिवेश को तैयार करना और बनाना है, जहां न केवल माहवारी संबंधी उत्पादों के उपयोग, उपलब्धता, निपटान और इसके बारे में जानकारी सहित माहवारी स्वच्छता के सभी पहलुओं को शामिल करते हुए उन्हें मौलिक अधिकारों का हिस्सा बनाया जाए, बल्कि माहवारी से जुड़े प्रतिबंधों और अंधविश्वास को भी दूर किया जा सके, ताकि ऐसी चीजें बीते दिनों की बात बन जाएँ।

21वीं सदी में भी, सांस्कृतिक प्रतिबंधों, लैंगिक असमानता, ग़रीबी, पुरानी सोच पर आधारित सामाजिक नियमों और बुनियादी सेवाओं की कमी के कारण दुनिया भर में माहवारी के दौरान महिलाओं का स्वास्थ्य और स्वच्छता एक बड़ी चिंता का विषय है। महामारी की वजह से लंबे समय तक लॉकडाउन और आमदनी में कमी के चलते हालात और खराब हो गए हैं। माहवारी के दौरान खराब स्वास्थ्य और स्वच्छता से न केवल महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है, बल्कि यह तनाव, चिंता और शिक्षा, काम और सामाजिक जीवन में कम भागीदारी का कारण बनता है। माहवारी आंतरिक रूप से इंसान की गरिमा से संबंधित है – जब महिलाएँ नहाने के लिए सुरक्षित सुविधाओं तथा अपनी माहवारी की स्वच्छता के प्रबंधन के सुरक्षित और प्रभावी साधनों तक नहीं पहुंच पाती हैं, तो वे अपनी माहवारी को गरिमा के साथ संभालने में सक्षम नहीं होती हैं। एक्शन लैब 2050महिलाओं, बच्चों और कमजोर तबके की आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए समानता में सुधार पर ध्यान केंद्रित करने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) का पालन करते हुए आगे बढ़ना चाहता है, ताकिकोई भी पीछे रहे

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